ट्विंकल की फरियाद

मम्मी! तुमने हमको जतन से पाला,
गर्मी बरसात जाड़ा में पड़ता पाला।
ठिठुर ठिठुर कर गीले वस्त्रों में सोयी,
रात जग जग आंखों की निंदियाखोयी।।

मेरी कहां ! कहां! कहां की किलकारी से
अक्सर बापू जग जाते! मुझे गले लगाते
गोदी में उठाकर रात रात थे वह बहलाते
भैया! भी मुझको उंगली पकड़ के घुमाते।।

ताऊ! चाचा! दादा- दादी! सब करते प्यार;
सिर पर बिठलाकर! गले का बनाते थे हार!
आज गुजरे वक्त पे कैसे कर लूं मैं एतबार,
सपना सा लगता ! बीता हो साल हजार?

तिल तिल कर दिन गिन गिन मां ने बिताया,
उफ! लंपट – पापी! नर राक्षस ने मिटाया।
फेरा पानी! सब किया धरा को नसाया भी”
पोती कालिख मुख अपने! घर वालों के भी।।

कुल को बोरा! कलंक कालिमा में डुबाया,
धन गया! धर्म भी! दोनों हाथों से बहाया।
पापी! नर पिशाच ने मुझे लालच दे बुलाया,
लालच बुरी बला है” कथन को मैंने भुलाया।।

किसी का दिया कभी न कुछ खाना” मैं भूली
मम्मी- पापा! तुम्हारी रहती बाहों में जो झूली।
आज बिलखती बंद कमरे में एकाकी मै रोती,
किस्मत मेरी फूट गई! सोती हूं न अब जगती।।

रात दिवस हे मां बापू! खूब तेरी याद सताती, 
बंद कमरे मे भला मैं कहां कैसे बिन तेरे सोती?
भूखी प्यासी बिन बिस्तर पड़ी जमीन पर रोती,
गद्दी और बिछड़ने पर! बाहों में कभी तेरे सोती!

सहरसा! आ पहुंचे नराधम! पापी पिशाच नर नारी
भू पर पटका! हाथों को जकड़ा!फोडी दोनों आंखें
मैं चिल्लाई! बहुत छटपटाई! हाय कुछ कर न पाईं
बेबस भैया बचाओ! मम्मी मम्मी! हे पापा बचाओ

पर नहीं कोई है आया! खंजर पापीने जब चलाया
खून की धार में उसने सिर से पैरों तक नहलाया।
सच कहती मम्मी याद तुम्हारी उमड़ घुमड़ आई
पानी से नहाने की तुम्हारी! याद ताजी हो आई।

इज्जत को बचाया था तुमने जो लुक छिप कर,
क्षणभर में सब देखो आज एक एक हुई तार तार
वर्षों से लुटाया था तुम सब ने मिलकर जो प्यार,
हे बापू! चाचा! भैया! मम्मी ! वह सब हुआ बेकार

—— रचयिता- शैलेंद्र कुमार मिश्र; प्रवक्ता;
सेन्टथामस इंटर कॉलेज, शाहगंज, जौनपुर, यूपी।
संपर्क नंबर- 9451528796.
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