भारतवर्ष में पूजा के समय स्त्रोत का क्या महत्व है?

भारतवर्ष देवी देवताओं एवं मंदिरों का देश है. भारतवर्ष में आस्था का स्थान सर्वोपरि है. यहां पर लोग अपने देवी-देवताओं एवं कुल पूजा के लिए सभी निर्माण करते हैं.

ऐसे में देवी-देवताओं के स्त्रोत की पूजा करना और उनका मंत्रोचार करना यह यहां की पूजन विधि की एक कला एवं प्रथा है.

भारतवर्ष में और यह सच्ची आस्था भी है मंत्र एवं ध्यान के साथ मंत्रोचार का पाठ करते हैं तो आपके सभी कष्ट सभी बाधाएं और आने वाली सभी विपत्तियां दूर हो जाती है तथा सुख संपत्ति एवं धन की प्राप्ति होती है

और उसको सेंड करना या पुरातन काल से चला आ रहा है शक की बात नहीं है इससे कई साइंटिफिक और वैज्ञानिक तरीकों से सिद्ध भी किया गया है कि जब आप संस्कृत की भाषाओं का प्रयोग करते हैं तो आपके मस्तिष्क का 7% भाग एक्टिवेट हो जाता है.

महिषासुर मर्दिनी स्तोत्र का अर्थ

जबकि साधारण तरीके से यदि आप इंग्लिश व्याकरण हिंदी भाषा का प्रयोग करते हैं तो अब कब मस्तिष्क केवल 2% की ही श्रम एवं एक्टिवेट होता है

कई लोगों को स्त्रोत का पाठ करना एक आडंबर सब प्रतीत होता है और पुरानी विचारधाराओं का पालन करना महसूस होता है

जबकि सच्चाई इसके उलट है आज की भागमभाग एवं दौड़ भरी जिंदगी में अपने दिमाग को स्थिर करने के लिए यह लोग कई प्रकार की जैन एवं कचरा दो का उपयोग कर रहे हैं जबकि सबसे सही और सुंदर एवं सटीक तरीका अपने कंट्रोल में रखने के लिए योगा का प्रयोग करना आवश्यक है.

संस्कृत भाषा का उपयोग पुरातन काल से इसीलिए किया जाता है कि आपकी पूरे शरीर में मस्तिष्क एवं जीवा का उपयोग सुचारू रूप से होता है

वैज्ञानिक शोध के अनुसार या पता हुआ है कि संस्कृत का उपचार अपने दैनिक जीवन में नित्य एवं प्रतिनिधि करते हैं तो आपके मस्तिष्क की सभी प्रक्रियाएं सुधार सुचारू रूप से चलते रहते हैं तथा होली की सभी भाषाएं अनंत काल तक अंतरिक्ष में पॉजिटिव व्यक्त पैदा करते हैं.