भारतीय रेलवे की ओर से एक श्रद्धांजलि I रवीन्द्रनाथ ठाकुर की 150वीं जयंती पर

संस्कृति यात्रा रवीन्द्र भबन

ममता बनर्जी द्वारा धन्यवाद देते हुए – बंगाल की मुख्यमंत्री

सुबह – सुबह उनके बारे में सोचने लगी । मन में आया कि मैं किसके बारे में सोच रही हूँ । उनके बारे में जो मेरे लिए आश्रय समान हैं और जिनपर मैं हमेशा निर्भर करती हूँ । वे हमारे दैनंदिन संघर्ष एवं रचनात्मकता के स्रोत हैं । एक वही तो हैं जिनपर मैं सुख, दुःख , विपत्ति एवं स्वाभिमान की विभिन्न परिस्थितियों में भरोसा करती हूँ । मेरे अंतर और बाह्य दोनों पर उनका आधिपत्य है । क्या उनके बारे में कोई नए विचार हो सकते हैं ? रवीन्द्रनाथ टेगौर केवल एक महान विभूति ही नहीं हैं जिन्हें उनके जन्मदिवस पर समारोहपूर्वक याद कर लिया जाए । ना ही वे किसी एक शताब्दी की अमानत हैं । उन्होंने गौतम बुद्ध और जेसस क्राइस्ट ( ईसा मसीह ) की भाँति मानवता पर अपनी अमिट छाप छोड़ी है । मेरे विचार पुनः अन्यत्र चले जाते हैं । स्मरण हो आता है कि कितनी कुशलतापूर्वक उन्होंने छन्दों का ताना – बाना बुना है । हमारी भावनाओं को सहज – सरल अभिव्यक्ति द्वारा विशिष्टता प्रदान की है :

पंछी गीत गाता है क्योंकि

आपने उसे मीठे बोल दिए हैं ।

मुझे आपने केवल स्वर दिए हैं ।

फिर भी मैं गीत गाता हूं ।

Quotes of Rabindra Nath Tagor

संस्कृति यात्रा रवीन्द्र – भावना में लिखा है, कविगुरु की रचनाओं से हो हम विषय और तिथि को यथासंभव दर्शाना चाहते थे । वे तो केवल कवि ही नहीं है , बलि 37 के उनके कर्ममय जीवन के विभिन्न आयाम हैं । वे एक साहित्यकार , चित्रकार , दार्शनिक , शिक्षक एवं समाजसेवक अपने इस छोटे से दल के प्रति अत्यंत कृतज्ञ हूं । जो गवेषणा कार्य , अनुवाद कार्य , अक्षर – विन्यास और इतने अल्प 5,500 क्यूबिक फुट के विस्तृत क्षेत्र को उनके आलोक चित्र , जीवन संबंधी तथ्य , साहित्य – रचना , नवीन शिक्षा भावना समय में एक संरचना का निर्माण करने में सक्षम हुए हैं।

हमारे इस प्रस्तुतिकरण में त्रुटि रह जाना असंभव नहीं है । तथापि , प्रयास है । इसके देशवासियों के समक्ष प्रदर्शित करने को भी हमारी इच्छा थी । इस प्रकार हम विभिन्न विषयों को लेकर प्रत्येक कोच कचौबीस घंटे कार्य किया । इस दल में प्रथम नाम सुश्री अर्पिता घोष का है । इनका साथ दिया है – लोपामुद्रा सिंह देव , दुवा घटनाएं प्राय : उनकी अपनी को यचौधुरी , विनोद त्रिपाठी , रमा रानी भट्टाचार्य , गौरांग चट्टोपाध्याय , साधना सिंह , ध्रुव गांगुली , रणजीत मंडल , सुमित देव सजाना चाहते हैं , पहले कांच का नाम ‘ जौवन – स्मृति ‘ है।

जिसमें उनके जीवन की अनेक में हो व्यक्त की गई हैं । शांतिनिकेतन और श्रोनिकेतन के निर्माण संबंधी उनकी भावना , विश्वभारती के विश्वविद्यालयाकुण्डल , तिलक दास , छोटू हेला , राजकुमार दास एवं सौरभ गांगुली । मैं विश्वभारती के दो प्रोफेसरों – श्रीमती आलपना रूप में स्थापित होने की घटना के साथ – साथ ही उनके का परिचय भी दर्शाया गया है ।

आत्मीय परिजनों य एवं श्री रामेश्वर मिश्र के प्रति अपनी कृतज्ञता व्यक्त करती हूँ । श्रीमती राय ने रवीन्द्रनाथ के कुछ नाटकों के संबंध में दूसरे कोच में कविता – संगीत एवं उनके द्वारा लिखे गए पत्रों में से कुछ अंश उद्धृत किए गए हैं इस कोच को नाका तैयार की एवं श्री मिश्र ने उसका अनुवाद करने के अतिरिक्त विभिन्न प्रकार से सहयोग किया है, इसलिए इसका नाम ‘ मुक्तबारा ‘ रखा गया है ।

चौथे कोच में उनको चित्र प्रदर्शनी लगाई गई है । उनके है । दर्शक छपवाकर इस कोच को सुसज्जित किया जिम्मेवार नहीं ठहराएंगे । इस कोच का नाम ‘ चित्ररेखा ‘ है । पांचवें तथा अंतिम कोच में उनके ‘ गीतांजलि ‘ है । तीसरे कोच में कहानी , उपन्यास , नाटक , निबंध आदि के कुछ उद्धरण प्रस्तुत करने का प्रयास किया।

लोग विशेष रूप से विश्वभारती के रवीन्द्र भवन के समक्ष कृतज्ञता व्यक्त करते हैं । उन्होंने हमारी अत्यंत सहायता की अंकित चित्रों को उनकी सहायता के बिना एक कदम भी आगे बढ़ना संभव नहीं था । श्री नीलांजन बंदोपाध्याय और उनके सहकर्मी पूर्वा निश्चित रूप से यथार्थ को ध्यान में रखकर उसके लिए हम निजी एवं अन्य ने हर तरह से रवीन्द्रनाथ को श्रद्धा ज्ञापित करने के लिए हमें सहयोग दिया ।

रेलवे के कोचों को में रेलवे के विभिन्न विभागों के अधिकारियों एवं कर्मचारियों ने इस कार्य में अथक सहयोग दिया है । जीवनकाल में ही दी इस प्रदर्शशाला के दर्शकगण इस कार्य को महत्वपूर्ण समझें तो, हमारा प्रयास सफल होगा। जीवन के अंतिम कुछ दिन दर्शशाला के रूप में रूपांतरित करने में सैलिएंट संगठन एवं शुभाशीष साहा ने कलाकार योगेन चौधुरी के निर्देशानुसार की घटनाएं वर्णित हैं। इसलिए इसका नाम ‘ शेष कथा ‘ है ।

आपलोग यह जानते हैं कि इन शब्दों का चयन रवीन्द्रनाथ का प्रकान्तिक रूप से प्रयास किया है । भाषा से ही किया गया है । उन्होंने अपने जीवन में व्यक्तिगत और सामाजिक दोनों ही दृष्टियों से असंख्य दुर्भाग्यजनक परिस्थितियों का सामना किया । उन्होंने पराधीन भारतवर्ष की वेदना और पीड़ा को देखा एवं उनके कारीगरी है । इसमें भी विश्वभारती ने सहयोग दिया है । विश्वास है कि इस उमणिकाओं का विश्वयुद्ध हुए । अहिंसा में विश्वास रखनेवाले कवि को वह पीड़ा सहनी पड़ी । फिर भी वे निराश नहीं हुए और कहा इस प्रदर्शशाला के साथ ‘ स्मरणिका ‘ जुड़ी हुई है , यह एक कुटीर उद्योग की प्रदर्शनी है, जो पूर्ण रूप से शांतिनिकेतन की ग्रह करना अच्छा लगेगा ।

मनुष्य के प्रति विश्वास खोना पाप है “, उन्होंने यह भरोसा रखा कि व्यक्तिगत जीवन की स्थिति को वापस लौटाने में सक्षम होगा । उन्होंने भविष्य के हाथों में सौंप दिया । इस महान व्यक्ति के आविर्भाव आयोजित अनुष्ठान वास्तव में उनके प्रति श्रद्धा , कृतज्ञता और सारे मनुष्य दुःसमय को जीत कर सभ्यता और समाज में अपनी श्रेष्ठ रचनाओं को वर्तमान और अनागत वर्ष पूरे होने के उपलक्ष्य में रेल मंत्रालय द्वारा सम्मान का प्रतीक है ।